Wednesday, June 24, 2020

CM नीतीश कुमार को कभी पैसों की इतनी तंगी थी कि उन्हें अखबार खरीदने का भी पैसा नही होता था...

 Nitish Kumar's house in Bakhtiyarpur
बख्तियारपुर स्थित नीतीश कुमार का घर
नीतीश कुमार जन्म 01 मार्च 1951 को बिहार के नालन्दा जिला के हरनौत कल्याण बिगहा गाँव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम कविराज राम लखन सिंह (वैध जी) है। उनके माता का नाम परमेश्वरी देवी है। नीतीश कुमार के पिताजी स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ आयुर्वेद के डॉक्टर भी थे। इसलिए लोग उन्हें वैध जी कहकर बुलाते थे। उनका बख्तियारपुर में सीढ़ी घाट के सामने एक घर भी है। जिसमें वो मरीजों को देखते थे। नीतीश कुमार को उनके पिताजी उन्हें मुन्ना कहकर पुकारते थे। नीतीश कुमार दो भाइयों में छोटे है। उनके बड़े भाई का नाम सतीश कुमार है। 

नीतीश कुमार ने अपनी स्कूली शिक्षा बख्तियारपुर के गणेश हाई स्कूल से पूरा किया था। उसके बाद 1972 में उन्होंने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (NIT) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बिहार राज इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड में काम भी किया था। 22 फरबरी 1973 को उनकी शादी मंजू सिन्हा से हुई थी जो पटना के गुलजारबाग के एक स्कूल में अध्यापिका थी। नीतीश कुमार का राजनीतिक में ज्यादा दिलचस्पी होने की बजह से उन्होंने बिजली विभाग का काम छोड़ दिया और राजनीतिक में कूद पड़े। 1974 में उन्होंने कार्यकर्ता के रूप मे काम किया। 

18 मार्च 1974 को कांग्रेस सरकार के खिलाफ बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर पटना में जेपी आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमे राज्य भर से आये छात्रों, युवकों और कार्यकर्ताओं ने बिहार विधान मंडल भवन का घेराव किया था। जिसमे नीतीश कुमार ने अहम भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन के बाद नीतीश कुमार काफी प्रचलित हो गए थे। 25 जून 1975 को रात में आपातकाल लगा दिया गया था। जिसमे करीब सवा लाख लोगों को अलग अलग जेलों में बंद कर दिया गया था। जिसमें छात्र, कार्यकर्ता, और पत्रकार भी सामिल थे।  

20 जुलाई 1975 को उनकी पत्नी मंजू सिन्हा ने एक बालक को जन्म दिया जिसका नाम निशांत रखा गया। 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था। उस समय जनता पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर रही थी लेकिन उसके बाद भी वो चुनाव हार गए थे। 1978 में उनके पिताजी राम लखन सिंह (वैद्य जी) का देहांत हो गया था। नीतीश कुमार कभी कभी अपने पिताजी को दवाई का पुड़िया बनाने में मदद करते थे। जिसका जिक्र वो अपने भाषणों में भी करते है कि पुड़िया इस तरह से बाँधते थे कि गिरने के बाद भी नहीं खुलता था। 

नीतीश कुमार के पिताजी के जाने के बाद घर की जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गया था। उनकी पत्नी पटना में ही रहकर स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी। नीतीश कुमार के गाँव कल्याण विगहा में कुछ जमीन था। उसी से उनके परिवार का भरण पोषण होता था। लेकिन नीतीश कुमार ने हिम्मत नही हारा और राजनीतिक का सफर जारी रखा। वो बख्तियारपुर से पटना ट्रैन से आया जाया करते थे। कभी कभी उन्हें अखबार खरीदने का भी पैसा नही होता था तो वे ट्रैन में बैठे दूसरे यात्री से अखबार माँगकर पढ़ लिया करते थे। उनकी पत्नी मंजू सिन्हा को यह सब बातें अच्छा नही लगता था। 

उनकी पत्नी उन्हें राजनीतिक से दूर रहने को कहती थी।  लेकिन नीतीश कुमार का मन राजनीतिक के अलावा कही और नही लगता था। इसलिए पत्नी के साथ वो कम ही रहते थे। वो चाहते तो पत्नी के साथ पटना में भी रह सकते थे लेकिन फिर उन्हें राजनीतिक से दूर होना पड़ता। जो उन्हें पसंद नहीं था। इसलिए नीतीश कुमार सुबह बख्तियारपुर में घर से खाना खा कर पटना के लिए निकलते थे तो देर रात को ही घर बख्तियारपुर वापस आते थे। कभी कभी पटना में उन्हें दोपहर का खाना भी नसीब नहीं होता था। 

बताया जाता है कि इस विकट परस्थिति में उनका बहनोई देवेन्द्र सिंह ने उनका साथ दिया था। जो पटना में ही रहते थे और रेलवे मे कार्यरत थे। 1980 में बिहार विधानसभा का चुनाव होने बाला था। जिसमे वो लड़ने का मन बना चुके थे। लेकिन चुनाव लड़ने के बाद इस बार भी उन्हें हार का ही मुँह देखना पड़ा। अब नीतीश कुमार के कैरियर पर सवाल खड़ा होने लगा। लोग तरह तरह की बातें करने लगे। उनकी पत्नी और परिवार के सभी लोग उन्हें राजनीतिक से दूर रहने के लिए कहने लगे। 

परिवार के दवाव के कारण कहीं न कहीं नीतीश कुमार भी टूट चुके थे। लेकिन नीतीश कुमार ने हिम्मत नही हारा और अगला विधानसभा सभा चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगे। 1985 में उन्हें लोकदल से टिकट दिया गया। जिसमें उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कुछ रुपये और एक जीप दिया गया था। लेकिन पार्टी के तरफ से जो रुपया मिला था वह अन्य उमीदवार के खर्च के अनुसार पर्याप्त नहीं था। ऐसे समय मे उनकी पत्नी मंजू सिन्हा ने यह कह कर उनका साथ दिया की इस बार अगर जीत नही हुआ तो उन्हें राजनीतिक से दूर रहना पड़ेगा। 

और अपनी सैलरी से बचाये गए रुपये उन्हें दे दिए जो पार्टी के द्वारा दिये गए रुपये से कहीं ज्यादा था। मेहनत रंग लाई और नीतीश कुमार हरनौत से बिहार विधानसभा का चुनाव जीत गए। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। उनके काम करने का अंदाज, लगन और मेहनत रंग लाने लगा। 1987 में नीतीश कुमार को युवा लोकदल का अध्यक्ष चुन लिया गया। उसके बाद उन्होंने खूब मेहनत किया। 1989 में उन्हें जनता दल का प्रदेश सचिव बनाया गया। उन्हें पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। जिसमे उन्हें जीत हासिल हुआ और सांसद के साथ केंद्र में मंत्री भी बने। 

1990 में नीतीश कुमार को पहली बार केंद्रीय मंत्री मंडल में कृषि राज्य मंत्री का पद मिला। उसके बाद वो केंद्रीय रेल और भूतल परिवहन मंत्री भी रहे। 2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन उनका कार्यकाल मात्र सात दिनों तक ही चला और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 2002 में नीतीश कुमार रेलवे मंत्री बने उस समय उन्होंने तत्काल और ई टिकट जैसी सुविधा मुहैया कराया। 30 अक्टूबर 2003 को उन्होंने नई पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का गठन किया जिसमें कई पार्टियों का विलय किया गया। 

2004 में वो नालन्दा और बाढ़ दो जगह से लोकसभा का चुनाव लड़े। जिसमे बाढ़ से वो हार गए लेकिन नालन्दा से उन्हें जीत हासिल हुआ। 2005 में राष्ट्रीय जनता दल जो कि 15 साल से बिहार में शासन कर रही थी उसे उन्होंने पीछे छोड़ दिया और भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई। एवं उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने बिहार में महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया। हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए विशेष छूट दी गई जिससे महिलाये आगे बढ़ सके। स्कूल में पढ़ने बाली छात्राओं को साइकिल बाँटी गई। जिससे छात्राओं में पढ़ने का उत्साह बढ़ा। अपराध पर कन्ट्रोल किया गया। जिससे रोजगार के साधन बढ़ने लगा। बिहार तरक्की की ओर बढ़ने लगा। और नीतीश कुमार का नाम विकास पुरूष में गिनती होने लगा। 

लेकिन अचानक 14 मई 2007 को उनकी पत्नी मंजू सिन्हा का देहांत हो गया। बताया जाता है कि उस समय वो फुट फुट कर रोये थे। और अपने बेटे निशांत के साथ उन्होंने अर्थी को कंधा दिया था। हर साल पूण्य तिथि के दिन पटना के कंकड़बाग स्थित मंजू सिन्हा पार्क और अपने गाँव हरनौत के कल्याण बिगहा के वाटिका में अपनी पत्नी मंजू सिन्हा को मालार्पण और श्रद्धांजलि देने जाते हैं। 2010 में नीतीश कुमार के पिछले काम काज को देखते हुए बिहार के युवाओं ने भारी संख्या में मतदान किया। और भाजपा में शामिल नीतीश कुमार को जीत दिलाया। 

26 नवंबर 2010 को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद के रूप में तीसरी बार शपथ ग्रहण किया। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का यह दूसरा कार्यकाल था। लेकिन भाजपा के साथ इस बार उनका गठबंधन में दरार पड़ने लगा। और 16 जून 2013 को नीतीश कुमार ने भाजपा के मंत्रियों को गठबंधन सरकार से बर्खास्त कर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने खराब प्रदर्शन किया। और 20 में से मात्र दो सीट ही उनके खाते में आई। जिसकी जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। और जीतन राम मांझी को बिहार के मुख्यमंत्री पद के रूप में शपथ ग्रहण करने का मौका मिला। 

2015 का चुनाव नीतीश कुमार के लिए चुनौती पूर्ण था। क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार थी। और नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ चुके थे। इसलिए उन्होंने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की स्थापना किया। जिसमे राहुल गांधी और लालू यादव जैसे नेताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन की जीत हुई। और एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बनाये गए। साथ ही लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन महागठबंधन की सरकार ज्यादा दिनों तक नही चल पाया। 


उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गए थे। तो नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को कैबिनेट से इस्तीफा देने को कहा लेकिन राजद इस पर राजी नही हुआ तो नीतीश कुमार ने खुद 26 जुलाई 2017 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर सबको अचम्भित कर दिया। उसके बाद महागठबंधन से नाता टूट गया। उसके अगले ही दिन 27 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर नई सरकार बनाया। जिसमें नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और सुशील मोदी को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया गया।