Wednesday, June 24, 2020

बिहार में मुस्लिम लोग भी करते हैं छठ पूजा, जानिए आस्था का महापर्व छठ व्रत किस प्रकार से मनाया जाता है...

Muslim people also do Chhath Puja in Bihar, know how Chhath Vrat is celebrated in the Mahaparva of faith…
Chhath Puja
छठ पूजा पहली अर्घ
आस्था का महापर्व छठ पूजा ऐसे तो पूरे भारत वर्ष के साथ विदेशों में भी मनाया जाता है। भारतीय समुदाय के विदेशों में रहने वाले कई लोग इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। छठी मईया की महिमा इतनी अपरम्पार है कि इस पर्व को कई मुस्लिम समुदाय के लोग भी मनाते हैं। इस बारे में जब मुस्लिम लोगों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनके यहाँ इस पर्व को तीन पीढ़ियों से मनाया जाता है। बिहार के पटना जिला के गंगा किनारे वसा एक गाँव में मुस्लिम समुदाय के कई लोग छठ पूजा का पर्व मानते आ रहे है। बात चीत के दौरान उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज खान साहब को निकाह के बाद कई सालों तक जब संतान नही हुआ तब हिन्दू पड़ोसियों के कहने पर उन्होंने छठ पूजा के खरना का प्रसाद तसमई खाया था। और संतान प्राप्ति के लिए मन में कामना रखा था। उसके बाद अगले साल ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुआ था। तभी से उनके यहाँ छठ पूजा का व्रत रखा जाने लगा। और ये लोग उन्ही के बंसज है। और इस परम्परा को निभाते आ रहे हैं। वही छठ पूजा को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस तरह की आस्था रखना हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को भी दर्शाता है। आपको बताते चलें कि खान साहब अपने गाँव के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति में से एक थे। यदि मसले का हल करना हो या किसी के जमीन जायदाद का बंटवारा करवाना हो तो ऐसे में खान साहब को जरूर बुलाया जाता था। क्योंकि वो निष्पक्ष फैसला करते थे। इसलिए गाँव के सभी हिन्दू मुस्लिम लोग उन्हें आदर करते थे।


Importance of Chhath Puja, why is Chhath festival celebrated?
छठ पूजा का महत्व, छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पर्व को लेकर कई तरह का महत्व बताया गया है। लेकिन आज हम आपको छठ पर्व के बारे में सबसे अहम और महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं। राजा महाराजाओं के समय में प्रियवद नाम के राजा राज्य करते थे। उन्हें धन वैभव सबकुछ प्राप्त था लेकिन उन्हें कोई पुत्र नही था। ऋषि मुनियों के कहने पर उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। और यज्ञ की आहुति से बनाया गया खीर उन्होंने अपनी रानी को खिलाया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। मरे हुए पुत्र को लेकर राजा प्रियवद गंगा नदी के श्मसान घाट चले गए जहाँ वे पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने जा रहे थे। तभी गंगा नदी से भगवान की मनसा कन्या देव सेना प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि हे राजन मैं सृष्टि के मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ। तुम मेरा पूजन करो एवं व्रत रखो साथ ही इसे अपनी पत्नी और कई लोगों को करने के लिए कहो ऐसा करने से अगले साल तुम्हारी पत्नी को सुन्दर पुत्र की प्राप्ति होगा। और राजा प्रियवद ने जब ऐसा किया तो उनकी पत्नी को अगले साल एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुआ। और तभी से इस व्रत और पूजन को छठ पूजा के नाम से जाना जाने लगा।


When is Chhath Puja, Chhath festival, Chhath fast observed?
छठ पूजा, छठ पर्व, छठ व्रत कब मनाया जाता है?

राजा प्रियवद के कथा अनुसार जब प्रियवद और उनकी रानी ने छठ पूजा का व्रत हिन्दी महीना के कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष छष्ठी को रखा था। और इसलिए इस पर्व का छठ पर्व भी कहते हैं। छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष छष्ठी को और दूसरी बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष छष्ठी को। लेकिन ज्यादातर लोग कार्तिक मास बाले छठ व्रत मनाते हैं। और इस बार 2019 मे यह छठ पूजा अंग्रेजी महीना के अनुसार 31 अक्टूबर से 03 नवंबर को मनाया जाएगा।
‌31 अक्टूबर को नहाय खाय
‌01 नवम्बर को लोहंडा
‌02 नवम्बर को पहली अर्घ
‌03 नवम्बर को दूसरी अर्घ और पारण



How is Chhath festival celebrated?
छठ पर्व कैसे मनाया जाता हैं?

छठ पर्व चार दिवसीय त्योहार है। छठ पर्व को पुरुष और महिलाएं दोनों मानते हैं। लेकिन ज्यादातर महिलाओं के द्वारा ही इस पर्व को मानते हुए देखा जाता है। छठ व्रत को दो तरह से मनाया जाता है। पहला अर्घ देकर और दूसरा कष्टी देकर। तो सबसे पहले हम बात कर लेते हैं कि छठ व्रत को अर्घ देकर कैसे मनाया जाता है।  छठ पर्व के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। नहाय खाय के दिन ब्रत रखने वाले प्रवइति के लिए खास तरह का अमनिया से भोजन समाग्री बनाया जाता है। जिसमे अरवा चावल का भात, चने की दाल, कददू का बचका और अरुई की शब्जी इत्यादि बनाया जाता है। भोजन समाग्री बनाने के लिए सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। नहाय खाय के दिन ब्रत रखने बाली प्रबइति सबेरे गंगा स्नान पूजा पाठ इत्यादि करके सबसे पहले भोजन ग्रहण करती है उसके बाद ही घर का कोई सदस्य खाना खाता है। इस तरह से छठ व्रत का पहला दिन नहाय खाय सम्पन होता है।
छठ व्रत नहाय खाय
छठ व्रत नहाय खाय

How do you celebrate Lohanda in Chhath Vrat?
छठ व्रत में लोहंडा कैसे मनाते है?

छठ व्रत के दूसरे दिन को लोहंडा कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने बाले प्रवाइति दिन भर खाना नही खाती है। लोहंडा के दिन शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी और गोइठा से अरवा चावल और मीठा का रसिया बनाया जाता है। साथ ही अमनिया गेंहू के आटे का रोटी भी बनाया जाता है। जिसे व्रत रखने बाली प्रवाइति मिट्टी के बर्तन में जिसे ढकनी कहा जाता है रसिया दूध और रोटी रख कर बन्द कमरे में पूजन करती है। पूजन होने के बाद उसे परिवार के सदस्यों को प्रसाद के रूप में खिलाया जाता है। जिसे नेउज कहा जाता है। उससे पहले व्रत रखने बाली प्रवाइति को पीतल की थाली में रसिया, दूध और रोटी बन्द कमरे में ही खाने को दिया जाता है। बाद में पास पड़ोस के लोगों को बुलाकर खिलाया जाता है। इस तरह से छठ व्रत का दूसरा दिन लोहंडा सम्पन होता है।
Chhath Vrat Lohanda
छठ व्रत लोहंडा

How do you celebrate the first Argh in Chhath Vrat?
छठ व्रत में पहली अर्घ कैसे मनाते है?

छठ व्रत के तीसरे दिन को पहली अर्घ कहा जाता है। इस दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। पहली अर्घ के दिन व्रत रखने बाली प्रबइति पूरे दिन और रात उपवास रखती है। पहली अर्घ की तैयारी सुबह से ही कि जाती है। इसके लिए मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी और गोइठा को जलाकर ठेकुआ, पकवान, लडुआ इत्यादि बनाया जाता है। साथ ही बाजार से बांस का बना टोकरी और सुप लाया जाता है। साथ ही सुप पर रखने के लिए फल, साँचा, बध्धी इत्यादि लाया जाता है। जिसे दो भागों में बाँट दिया जाता है। एक भाग को सुबह के लिए रख दिया जाता है और दूसरे भाग को सुप में रख कर टोकरी में रख दिया जाता है। जिसे सूर्य अस्त होने से पहले गंगा नदी ले जाया जाता है। जहाँ व्रत रखने बाली प्रवाइति गंगा स्नान करके फल से भरा सुप को अपने हाथों में लेकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ देती है। और चारों दिशाओं में भी घूम घूम कर अर्घ देती है। अर्घ देने के क्रम में परिवार के सभी सदस्य प्रबइति के चारो तरफ खड़े होकर हाथों से दूध और जल अर्पण करते है। इस तरह से छठ व्रत का तीसरा दिन पहली अर्घ सम्पन होता है।



How do you celebrate the second Argh Paran in Chhath Vrat?
छठ व्रत में दूसरी अर्घ पारन कैसे मनाते है?

छठ व्रत के चौथे दिन को दूसरी अर्घ या पारन कहा जाता है। जिसकी तैयारी सुबह चार बजे भोरे उठकर किया जाता है। सुप को बचे हुए नए फलों से सजाया जाता है। फलों की टोकरी जिसे दौरा कहा जाता है ले जाने वाले को सुबह सुबह स्नान करके माथे पर दौरा उठाकर गंगा नदी पहले भेज दिया जाता है ताकि वो सूर्य उदय से पहले पहुँच सके। उसके पीछे महिलाएं पूरे रास्ते छठ पूजा का गीत गाते हुए जाती हैं। गंगा नदी पहुचने के बाद छठ व्रत रखने बाली प्रवाइति सूर्य उदय से पहले गंगा नदी में स्नान करके हाथों में फलों का सूप लेकर खड़ी रहती है। और सूर्य उगने का इंतजार करती है। सूर्य का पहली झलक दिखते ही उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। और शाम के जैसा ही परिवार के सभी सदस्य प्रवाइति के चारो तरफ होकर जल और दूध से अर्पण करते हैं। गंगा घाटों पर पटाखा और फुलझड़ियां भी छोड़ा जाता है। इस तरह छठ व्रत का चौथा दिन दूसरी अर्घ सम्पन होता है। पूजा पाठ करने के बाद ठेकुआ और फलों को प्रसाद के रूप में खाया जाता है और दूसरों को भी खिलाया जाता है।